डॉ. बशीर बद्र के शेरों में जज़्बे और एहसास की जो घुलावट मिलती है वो उन्हें दूसरे शायरों से न सिर्फ़ अलग करती है - बल्कि उनमें ग़ज़ल की आम लफ़ज़ियात से शऊरी गुरेज़ और इर्द गिर्द के माहौल से उनकी ज़ेहनी कुर्बत उन तब्दीलियों का इशारा बनती है जो बाद में ज़्यादा सफ़ाई और चतुराई के साथ उनकी ग़ज़ल की शिनाख़्त मानी जाती है| बशीर बद्र की आवाज़ दूर से पहचानी जाती है|
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